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मीरियात
अशआ'र-ए-'मीर' सब ने चुन चुन के लिख लिए हैं
रक्खेंगे याद हम भी कुछ बैतें चीदा चीदा
मीर तक़ी मीर
नज़्म
कातिक का चाँद
मीर-ए-मग़्फ़ूर के अशआर न पैहम पढ़ना
जीने वालों को अभी और भी जीना होगा
इब्न-ए-इंशा
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ग़ज़ल
सच तो ये बात है ऐ 'ऐश' कि पाते हैं यहाँ
तेरे अशआ'र में तर्ज़-ए-सुख़न-ए-'मीर' की बू
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
अशआ'र-ए-ग़ज़ल 'मीर' के लहजे में न लिक्खो
सुनने को तुम्हें ख़स्ता-जिगर आते हैं कितने
शेहाब काज़मी
ग़ज़ल
कोई समझे कि न समझे तिरे अशआ'र 'कलीम'
ज़ोर-ए-'ग़ालिब' भी है और दिलकशी-ए-'मीर' भी है